बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह का पूरा इतिहास
राज- 1888-1943
जन्म- 13 अक्टूबर 1880
मृत्यु- 2 फरवरी 1943 (उम्र 62 – कैंसर)
पिता- महाराजा लाल सिंह
भाई- डूंगर सिंह
पत्नी- महारानी वल्लभकुवेर साहिबा (प्रतापगढ़) (1896 – 1906)
महारानी- श्री भटियाणीजी साहिबा
राजघराना- बीकानेर
पुत्र- सादुल सिंह
भारत में वैसे तो बहुत सारी रियासतें हुई हैं लेकिन आज हम एक ऐसे राजपूत नरेश के बारे में बताने वाले हैं जिन्हें आधुनिक काल का भगीरथ कहा जाता है। इस महाराजा का कद अंग्रेजों के सामने काफ़ी बड़ा था। इनकी वीरता के चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे। माँ करणी के इस भक्त को जब इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम ने अपने राजदरबार मे बुलाकर उनकी वीरता के बारे में बताते हुए उनको शेर से लड़ने की चुनौती दे डाली, तब इन्होंने इस चुनौती को सहजता से स्वीकार करते हुए एक ही प्रहार से शेर के पिंजरे में जाकर, शेर को मार डाला था। इस दृश्य को देखकर राजदरबार में उपस्थित सभी लोग हैरान रह गए।
महाराजा गंगा सिंह का जन्म
गंगासिंह का जन्म 13 अक्टूबर 1880 को बीकानेर में हुआ था। गंगा सिंह जी, 1888 से 1943 तक बीकानेर रियासत के महाराजा थे। उन्हे सब आधुनिक सुधारवादी भविस्यदर्शक के रूप में याद करते हैं। पहले विश्व युद्ध के दौरान ‘ब्रिटिश इम्पीरियल वार केबिनेट’ के अकेले गैर-अंग्रेज सदस्य रहे। गंगा सिंह जी महाराजा लालसिंह की तीसरी संतान थे। गंगासिंह जी, डूंगर सिंह के छोटे भाई थे, जो बड़े भाई की मृत्यु के बाद 16 दिसंबर 1887 को बीकानेर के राजा बने।
महाराजा गंगा सिंह की शिक्षा
महाराजा गंगासिंह की प्रारंभिक शिक्षा घर से ही शुरू हुई। बाकी की शिक्षा अजमेर के मेयो कॉलेज में 1889 से 1894 के बीच हुई। ठाकुर लालसिंह के मार्गदर्शन में 1895 से 1898 के बीच इन्हें प्रशासनिक प्रशिक्षण मिला। 1898 में गंगा सिंह फ़ौजी-प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए देवली रेजिमेंट भेजे गए जो तब लेफ्टिनेन्ट कर्नल बैल के अधीन देश की सर्वोत्तम मिलिट्री प्रशिक्षण रेजिमेंट मानी जाती थी।
महाराजा गंगा सिंह का निजी जीवन
महाराजा गंगासिंह का निजी जीवन सुखमय रहा। गंगा सिंह जी को छोटी उम्र में ही में राजगद्दी मिल गयी थी। उनके दो विवाह हुए थे पहला विवाह प्रतापगढ़ राज्य की सुपुत्री वल्लभ कुंवरी से 1897 में और दूसरा विवाह बीकमकोर की राजकन्या भटियानी जी से हुआ जिनसे इनके दो पुत्रियाँ और चार पुत्र हुए ।
बीकानेर राजघराना
मध्य युग में सत्ता का केंद्र रहे बीकानेर राज्य की स्थापना 1488 ई. में मारवाड़ के राव बिका ने की। यही कारण है कि भारत की सिंध से लगी पश्चिमी सीमा को राजनीतिक एवं सैन्य दृष्टि से मजबूती मिली। राव बिका जी का विवाह पूगल के राव शेखा की सुपुत्री से हुआ। राव बिका जी ने कई जनहित के कार्य करवाये अंत में 1504 में मुत्यु के पश्चात राव नारायण सिंह ने शासन संभाला। राव जैतसी ने 1526 से 1542 तक एवं राव कल्याण मल ने 1542 से 1574 तक राजकार्य संभाला। इसके बाद मुगलों के राज में कल्याण मल के पुत्र राजा रायसिंह ने मुंगलो की अधीनता स्वीकार कर ली। आगे की पीढ़ी में महाराजा लालसिंह की मुत्यु के बाद उनका बेटा महाराज सरदार सिंह राजगद्दी पर बैठा। उनकी कोई संतान नहीं थी उनकी मुत्यु के बाद महाराजा डूंगर सिंह ने राजकार्य संभाला। 1887 में उनकी मुत्यु के बाद उनके छोटे भाई गंगा सिंह को अल्पायु में महाराजा नियुक्त किया। महाराजा गंगा सिंह के कार्यकाल में बीकानेर के विकास की गंगा बही थी।
बीकानेर के गंगा सिंह का कार्यस्थल
पहले विश्वयुद्ध में एक फ़ौजी अफसर के पद पर गंगासिंह ने अंग्रेजों की तरफ से ‘बीकानेर कैमल कार्प्स’ के प्रधान के रूप में फिलिस्तीन, मिश्र और फ़्रांस के युद्धों में सक्रिय हिस्सा लिया। 1902 में ये प्रिंस ऑफ़ वेल्स के और 1910 में किंग जॉर्ज पंचम के ए. डी. सी. भी रहे।
महायुद्ध समाप्ति के बाद अपनी बीकानेर रियासत में लौट कर उन्होंने प्रशासनिक सुधारों और विकास की गंगा बहाने के लिए जो-जो कार्य किये वे किसी भी लिहाज़ से साधारण नहीं कहे जा सकते। 1913 में उन्होंने जन-प्रतिनिधि सभा का गठन किया। 1922 में एक मुख्य न्यायाधीश के अधीन अन्य दो न्यायाधीशों का एक उच्च-न्यायालय स्थापित किया और बीकानेर को न्यायिक-सेवा के क्षेत्र में अपनी ऐसी पहल से देश की पहली रियासत बनाया। अपनी सरकार के कर्मचारियों के लिए उन्होंने ‘एंडोमेंट एश्योरेंस स्कीम’ और ‘जीवन-बीमा योजना’ लागू की। निजी बेंकों की सेवाएं आम नागरिकों के लिए भी उपलब्ध करवायी और अपने राज्य में बाल-विवाह रोकने के लिए शारदा एक्ट को सख्ती से लागू किया। 1917 में ये ‘सेन्ट्रल रिक्रूटिंग बोर्ड ऑफ़ इण्डिया’ के सदस्य नामांकित हुए और इसी वर्ष उन्होंने ‘इम्पीरियल वार कांफ्रेंस’ में, 1919 में पेरिस शांति सम्मलेन में और इम्पीरियल वार केबिनेट में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1920 से 1926 के बीच गंगा सिंह ‘इन्डियन चेंबर ऑफ़ प्रिन्सेज़’ के चांसलर बनाये गए। इस बीच 1924 में ‘लीग ऑफ़ नेशंस’ के पांचवें अधिवेशन में भी इन्होंने भारतीय प्रतिनिधि की हैसियत से हिस्सा लिया। शान्ति समझौते में बीकानेर के महाराजा गंगासिंह को बुलाया गया था। इन्होंने देशी राज्यों के मुखिया के रूप में सम्मेलन में हिस्सा लिया। वर्ष 1921 में नरेंद्रमंडल का गठन इन्हीं की बदौलत किया गया। बाद में गंगासिंह को इसका अध्यक्ष चुना गया था। गंगा सिंह देशी राज्य के जनहितों के पक्षधर थे तथा वे अंग्रेजों के चाटुकार थे। इन्होने अपने जीवन काल में कई महत्वपूर्ण जनहित का कार्य किये जैसे गंगनहर का लाना, जिसके कारण इन्हें कलयुग का भागीरथ भी कहते हैं । उनकी रियासत उस काल की सबसे सम्पन्न रियासत थी।
वे ‘श्री भारत-धर्म महामंडल’ और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संरक्षक, ‘रॉयल कोलोनियल इंस्टीट्यूट’ और ‘ईस्ट इण्डिया एसोसियेशन’ के उपाध्यक्ष, ‘इन्डियन आर्मी टेम्परेन्स एसोसियेशन’, ‘बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ लन्दन की ‘इन्डियन सोसाइटी’, ‘इन्डियन जिमखाना’, मेयो कॉलेज अजमेर की जनरल कॉउंसिल, ‘इन्डियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट’ जैसी संस्थाओं के सदस्य और, ‘इन्डियन रेड-क्रॉस’ के पहले सदस्य थे।
महाराजा गंगा सिंह के योगदान
उन्होंने 1899 से 1900 के बीच पड़े कुख्यात ‘छप्पनिया काल’ की ह्रदय-विदारक विभीषिका देखी थी और अपनी रियासत के लिए पानी का इंतजाम एक स्थाई समाधान के रूप में करने का संकल्प लिया था और इसीलिये सबसे क्रांतिकारी और दूरदृष्टिवान काम जो इनके द्वारा अपने राज्य के लिए किया गया वह था – पंजाब की सतलज नदी का पानी ‘गंग-केनाल’ के ज़रिये बीकानेर जैसे सूखे प्रदेश तक लाना और नहरी सिंचित-क्षेत्र में किसानों को खेती करने और बसने के लिए मुफ्त ज़मीनें देना।
श्रीगंगानगर शहर के विकास में भी इनका बहुत बड़ा सहयोग है यहाँ पर कई निर्माण कार्य करवाए और बीकानेर में अपने निवास के लिए पिता लालसिंह के नाम से ‘लालगढ़ पैलेस’ बनवाया। बीकानेर को जोधपुर शहर से जोड़ते हुए रेलवे के विकास और बिजली लाने की दिशा में भी ये बहुत सक्रिय रहे। जेल और भूमि-सुधारों की दिशा में इन्होंने नए कायदे कानून लागू करवाए, नगरपालिकाओं के स्वायत्त शासन सम्बन्धी चुनावों की प्रक्रिया शुरू की और राजसी सलाह-मशविरे के लिए एक मंत्रिमंडल का गठन भी किया। 1933 में लोक देवता रामदेवजी की समाधि पर एक पक्के मंदिर के निर्माण का श्रेय भी इन्हे ही जाता है।
महाराजा गंगा सिंह एक वीर योद्धा थे। उन्होंने गंग फ़ौज़ का गठन किया था। उनकी फौज की वीरता प्रथम विश्व युद्ध में गूंज उठी थी, जिससे उनका सिर ऊंचा हो गया था। इतना ही नहीं आजादी के बाद कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के युद्ध में भी गंग फ़ौज़ ने पाकिस्तानी सेना के साथ जमकर लौहा लिया था।
महाराजा गंगा सिंह का मान सम्मान
1880 से 1943 तक इन्हें 14 से भी ज्यादा कई महत्वपूर्ण सैन्य-सम्मानों से नवाज़ा गया। इसके अलावा सन 1900 में केसर हिन्द की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1918 में इन्हें पहली बार 19 तोपों की सलामी दी गयी। वहीं 1921 में दो साल बाद इन्हें अंग्रेज़ी शासन द्वारा स्थाई तौर पर 19 तोपों की सलामी योग्य शासक माना गया।
महाराजा गंगा सिंह की मृत्यु
2 फरवरी 1943 को 56 साल के राज के बाद 62 वर्ष की उम्र में आधुनिक बीकानेर के निर्माता जनरल गंगासिंह का निधन मुम्बई में हुआ। इनकी मृत्यु के बाद इनके सबसे बड़े पुत्र सादुल सिंह जी द्वारा बीकानेर की राजगद्दी को संभाला गया। बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह जी की क्षति अपूरणीय है उनकी वीरता को हमारा क्षत-क्षत नमन ।
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