नाम- मिर्जा नूर-उद-दीन बेग मोहम्मद खान सलीम
जन्म तिथि- 31 अगस्त 1569, फतेहपुर सीकरी, मुगल साम्राज्य
मृत्यु- 28 अक्टूबर 1627, राजोरी, कश्मीर
पिता- अकबर
माता- मरियम
पत्नी
नूर जहां, साहिब जमाल, जगत गोसेन,
मलिक जहां, शाह बेगम, खास महल,
करमसी, सलिहा बानु बेगम, नूर-अन-निसा बेगम,
बच्चे      
खुसरो मिर्जा, खुर्रम मिर्जा (शाहजहां),
परविज मिर्जा, शाहरियर मिर्जा, जहांदर मिर्जा,
इफत बानू बेगम, बहार बानू बेगम, बेगम सुल्तान बेगम,
सुल्तान-अन-निसा बेगम, दौलत-अन-निसा बेगम,
जहांगीर का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन
मुगल सम्राट जहांगीर 31 अगस्त, 1569 को मुगल सम्राट अकबर के बेटे के रुप में फतेहपुर सीकरी में स्थित शेख सलीम चिश्ती की कुटिया में जन्में थे। जहांगीर की माता का नाम मरियम उज्जमानी था। सलीम से पहले अकबर की कोई भी संतानें जीवित नहीं बचती थी, जिसके चलते सम्राट अकबर ने काफी मिन्नतें कीं और फिर बाद सलीम का जन्म हुआ था। जहांगीर को बचपन से ही उन्हें सब सुल्तान मुहम्मद सलीम कहकर पुकारते थे।
 सम्राट अकबर ने अपने पुत्र का नाम फतेहपुर सीकरी के शेख सलीम चिश्ती के नाम पर उनका नाम रखा था। मुगल सम्राट अकबर ने, अपने बेटे जहांगीर को बेहद कम उम्र से ही सैन्य और साहित्य में निपुण बनाने के प्रयास शुरु कर दिए थे। जब वे महज 4 साल के थे, तब सम्राट अकबर ने उनके लिए बैरम खां के पुत्र अब्दुल रहीम खान-ए-खाना जैसे विद्धान शिक्षक नियुक्त किया।
जिससे जहांगीर ने इतिहास, अंकगणित, भूगोल, अरबी, फारसी, और विज्ञान की शिक्षा ग्रहण की थी, जिसकी वजह से जहांगीर अरबी और फारसी में विद्धान हो गया था। इतिहासकारों के मुताबिक सम्राट अकबर के साथ जहांगीर के रिश्ते अच्छे नहीं थे।
जहांगीर ने सत्ता समेत कई कारणों के चलते कई बार अपने पिता अकबर के खिलाफ षणयंत्र भी रचा और विद्रोह करने की कोशिश की लेकिन फिर बाद में दोनों पिता-पुत्र में आपस में समझौता कर लिया था। हालांकि अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर को मुगल सिंहासन का राजपाठ सौंपा गया था।
जहांगीर का विवाह और बच्चे
अकबर का इकलौता बारिस होने के कारण और वैभव-विलास में पालन-पोषण की वजह से जहांगीर एक बेहद शौकीन और रंगीन मिजाज का शासक था, जिसने करीब 20 शादियां की थी, हालांकि उनकी सबसे चहेती और पसंदीदा बेगम नूर जहां थीं। वहीं उनकी कई शादियां राजनीतिक कारणों से भी हुईं थी।
16 साल की उम्र में जहांगीर की पहली शादी आमेर के राजा भगवान राज की राजकुमारी मानबाई से हुई थी। जिनसे उन्हें दो बेटों की प्राप्ति हुई थी। वहीं जहांगीर के बड़े बेटे खुसरो मिर्जा के जन्म के समय मुगल सम्राट जहांगीर ने अपनी पत्नी मानबाई को शाही बेगम की उपाधि प्रदान की थी।
इसके बाद जहांगीर कई अलग-अलग राजकुमारियों से उनकी सुंदरता पर मोहित होकर शादी की। आपको बता दें साल 1586 में जहांगीर ने उदय सिंह की पुत्री जगत गोसन की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे विवाह किया। जिनसे उन्हें दो पुत्र और दो पुत्रियां पैदा हुईं।
हालांकि, इनमें से सिर्फ एक ही पुत्र खुर्रम जीवित रह सका, अन्य संतान की बचपन में ही मौत हो गई। बाद में उनका यही पुत्र सम्राट शाहजहां के रुप में मुगल सिंहासन पर बैठा और मुगल साम्राज्य का जमकर विस्तार किया, वहीं शाहजहां को लोग आज भी सात आश्चर्यों में से एक ताजमहल के निर्माण के लिए याद करते हैं।
जहांगीर के अपनी सभी पत्नियों से पांच बेटे खुसरो मिर्जा, खुर्रम मिर्जा (शाहजहां), परविज मिर्जा, शाहरियर मिर्जा, जहांदर मिर्जा और इफत बानू बेगम, बहार बानू बेगम, बेगम सुल्तान बेगम, सुल्तान-अन-निसा बेगम,दौलत-अन-निसा बेगम नाम की पुत्रियां थी।
जहांगीर की पसंदीदा बेगम नूरजहां से रिश्ते
ऐसा कहा जाता है कि जब पहली बार मुगल सम्राट जहांगीर ने मिर्जा ग्यास बेद की बेटी मेहरून्निसा उर्फ नूरजहां को देखा था। तो वे उनकी खूबसूरती से इतने मोहित हो गए थे, कि उन्होंने उनसे निकाह करने का फैसला लिया था। आपको बता दें कि मेहरून्निसा को अपने पति अलीकुली बेग की मौत के बाद अकबर की विधवा सलीमा बेगम की सेवा के लिए नियुक्त किया गया था।
1611 ईसवी में सम्राट जहांगीर ने मेहरून्निसा की खूबसूरती पर लट्टू पर विधवा मेहरुन्निसा से शादी कर ली। वहीं शादी के बाद सम्राट जहांगीर ने उसे नूरमहल और नूरजहां की उपाधि दी थी। इसके साथ ही जहांगीर ने अपने राज्य की सारी शक्तियां भी नूरजहां बेगम के हाथों में सौंप दी थी।
नूरजहां को इतिहास में एक साहसी महिला के रुप में भी जाना जाता है, क्योंकि वह जहांगीर के साथ उनके राजकाज में हाथ बंटाती थी, वहीं जहांगीर अपने शासनकाल में सभी महत्वपूर्ण फैसलें नूरजहां की सलाह से ही लेता था। वहीं 1626 ईसवी में नूरजहां बेगम ने इतमाद-उद-दौला का मकबरे का निर्माण करवाया था, यह मुगलकालीन वास्तुकला से बनाई गई पहली ऐसी इमारत थी जो सफेद संगमरमर से बनी थी।
मुगल शासक के रुप में जहांगीर
साल 1605 में अकबर की मृत्यु के बाद सुल्तान सलीम को मुगल बादशाहका ताज पहनाया गया और उन्हें जहाँगीर नाम की उपाधि दी गई। वहीं जब मुगल शासक जहांगीर की उम्र 36 साल की थी, तब उन्हें मुगल साम्राज्य की जिम्मेदारी एक आदर्श शासक के रुप में संभाली और कई सालों तक मुगल सिंहासन संभाला।
उन्होंने अपने शासनकाल में मुगल साम्राज्य का जमकर विस्तार किया और विजय अभियान चलाया। वहीं जो क्षेत्र उनके पिता अकबर द्धारा नहीं हासिल किए गए थे, उन्होंने सबसे पहले ऐसे निर्विवाद क्षेत्रों को जीतने के प्रयास किए। मुगल सम्राट जहांगीर ने अपना सबसे पहला सैन्य अभियान मेवाड़ के शासक अमर सिंह के खिलाफ चलाया।
जिसके बाद अमर सिंह को जहांगीर के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा और फिर दोनों शासकों के बीच साल 1615 ईसवी में शांति संधि हुई। मेवाड़ में मुगल साम्राज्य का विस्तार करने के बाद अपना विजय अभियान चलाते हुए, जहांगीर ने दक्षिण भारत में मुगलों का आधिपत्य जमाने के मकसद से दक्षिण में फोकस करना शुरु किया।
हालांकि वे इस पर अपना पूरी तरह से नियंत्रण करने में तो कामयाब नहीं हो सके, लेकिन उनके सफल प्रयासों से बीजापुर के शासक, अहमदनगर और मुगल साम्राज्य के बीच शांति समझौता किया गया, जिसके बाद कुछ किले और बालाघाट के क्षेत्र मुगलों को दे दिए गए।
जबकि जहांगीर ने अपने पुत्र खुर्रम उर्फ शाहजहां के नेतृत्व में साल 1615 में उत्तरी भारत में मुगल साम्राज्य का विस्तार किया। इस दौरान उनकी सेना ने कांगड़ा के राजा को हार की धूल चटाई और अपने विजयी अभियानों को दक्करन तक आगे बढ़ाया। इस तरह मुगल साम्राज्य का विस्तार होता चला गया।
चित्रकला का गूढ़ प्रेमी था जहांगीर
मुगल सम्राट जहांगीर चित्रकला का बेहद शौकीन था, वे अपने महल में कई अलग-अलग तरह के चित्र इकट्ठे करते रहते थे उसने अपने शासनकाल में चित्रकला को काफी बढ़ावा भी दिया था। यही नहीं जहांगीर खुद के एक बेहतरीन आर्टिस्ट थे। मनोहर और मंसूर बिशनदास जहांगीर के शासनकाल के समय के मशहूर चित्रकार थे।
जहांगीर के शासनकाल को चित्रकला का स्वर्णकाल भी कहा जाता है। वहीं मुगल सम्राट ने जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा में भी लिखा है कि कोई भी चित्र चाहे वह किसी मृतक व्यक्ति या फिर जीवित व्यक्ति द्वारा बनाया गया हो, मैं देखते ही तुरंत बता सकता हुँ कि यह किस चित्रकार की कृति है।
बेटे खुसरों के खिलाफ विद्रोह और पांचवे सिख गुरु की हत्या
मुगल सम्राट जहांगीर जब मुगल सिंहासन की बागडोर संभाल रहे थे, तभी उनके सबसे बड़े बेटे खुसरो ने सत्ता पाने के लालच में अपने पिता जहांगीर पर 1606 ईसवी में षणयंत्र रच आक्रमण करने का फैसला लिया था। जिसके बाद जहांगीर की सेना और खुसरो मिर्जा के बीच जलांधर के पास युद्ध हुआ और जहांगीर की सेना खुसरो को हराने में सफल रही और इसके बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया।
इसके कुछ समय बाद ही खुसरो की मृत्यु हो गई थी। वहीं जहांगीर को जब पता चला कि खुसरो द्धारा उनके खिलाफ विद्रोह में सिक्खों के 5वें गुरु अर्जुन देव ने मद्द की है, तो उन्होंने अर्जुन देव की हत्या करवा दी।
न्याय की जंजीरके लिए जहांगीर को किया जाता है याद
जहांगीर ने कुशल और आदर्श शासक के रुप में अपने शासनकाल में न्याय व्यवस्था को ठीक करने के भी उचित कदम उठाए। जहांगीर जनता के कष्टों और मामलों को खुद भी सुनता था। और उनकी समस्याओं का हल करने की पूरी कोशिश करता था, एवं उन्हें न्याय दिलवाता था।
इसके लिए जहांगीर ने आगरे के किले शाहबुर्ज और यमुना तट पर स्थित पत्थर के खंबे में एक सोने की जंजीर बंधवाई थीं जिसमें करीब 60 घंटियां भी लटकी हुई थी, जो कि न्याय की जंजीरके रुप में प्रसिद्ध हुई। दरअसल, कोई भी फरियादी मुश्किल के समय इस जंजीर को पकड़कर खींच सकता था और सम्राट जहांगीर से न्याय की गुहार लगा सकता था।
करीब 40 गज लंबी इस न्याय की जंजीरको बनवाने में काफी ज्यादा लागत खर्च हुई थी। वहीं जहांगीर को न्याय की जंजीर के लिए आज भी याद किया जाता है।

मुगल सम्राट जहांगीर की मृत्यु
साल 1627 में जब मुगल सम्राट जहांगीर कश्मीर से वापस लौट रहा था, तभी रास्ते में लाहौर (पाकिस्तान) में तबीयत बिगड़ने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद, जहांगीर के मृत शरीर को अस्थायी रूप से लाहौर में रावी नदी के किनारे बने बागसर के किले में दफनाया गया था।
 बाद में वहां जहांगीर की बेगम नूरजहां द्धारा जहांगीर का भव्य मकबरा बनवाया गया, जो आज भी लाहौर में पर्यटकों के आर्कषण का मुख्य केन्द्र है। वहीं जहांगीर की मौत के बाद उसका बेटा खुर्रम (शाहजहां) मुगल सिंहासन का उत्तराधिकारी बना।
जहांगीर की आत्मकथा
जहांगीर लिखने का बेहद शौकिन था, जहांगीर द्वारा शुरू की गई किताब तुजुक-ए-जहांगीरनाम की आत्मकथा को मौतबिंद खान द्धारा पूरा किया गया। इस तरह जहांगीर ने अपनी पूरी जिंदगी ऐश-ओ-आराम से जी।
वहीं शराब की बुरी लत ने उसके शरीर को बर्बाद कर दिया था। हालांकि, जहांगीर ने अपने जीवन में कुछ महत्वपूर्ण लड़ाई तो नहीं लड़ी, लेकिन अपने पिता अकबर द्दारा रखी गई मुगल साम्राज्य की मजबूत नींव को कमजोर भी नहीं पड़ने दिया। जहांगीर को उसकी उदारता, दरियादिली के लिए जाना जाता है।