पूरा नाम- अल् आजाद अबुल मुजफ्फर साहब उद्दीन बेग़ मुहम्मद ख़ान ख़ुर्रम
जन्म- 5 जनवरी, 1592 ईसवी, लाहौर, पाकिस्तान
पिता- जहाँगीर
माता- ‘जगत गोसाई’ (जोधाबाई)
विवाह- अर्जुमंद बानो बेगम उर्फ मुमताज महल,
कन्दाहरी बेग़म अकबराबादी महल, हसीना बेगम, मुति बेगम,
कुदसियाँ बेगम, फतेहपुरी महल, सरहिंदी बेगम, श्रीमती मनभाविथी
सन्तान- पुरहुनार बेगम, जहांआरा बेगम, दारा शिकोह,
शाह शुजा, रोशनारा बेगम, औरंग़ज़ेब, मुराद बख्श, गौहरा बेगम।
मुगल बादशाह शाहजहां का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन –
एक सच्चे आशिक के तौर पर विश्व भर में अपनी पहचान बनाने वाले मुगल बादशाह शाहजहां का जन्म 5 जनवरी, 1592 को लाहौर में मुगल सम्राट जहांगीर और ‘जगत गोसाई’ (जोधाबाई) के पुत्र के रुप में पैदा हुए थे। शाहजहाँ माता जोधपुर के शासक राजा उदयसिंह की बेटी थी।
वहीं शहंशाह, मुगल सम्राट अकबर के पोते के रुप में जन्में थे। मुगल सम्राट अकबर ने सबसे पहले उन्हें शहजादा खुर्रम कहकर बुलाया था, जिसके बाद बचपन में उनका नाम खुर्रम पड़ गया था।
दरअसल, खुर्रम शब्द का अर्थ- खुशी होता है। वहीं दादा-पोते का लगाव बहुत अधिक था। ऐसा सुना और पढ़ा जाता है कि अकबर ने शाहजहां को गोद ले लिया था और उनकी परवरिश भी अकबर ने ही की थी। वहीं अकबर ने शाहजहां को एक महान वीर योद्धा बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी, उन्होंने उसे बचपन से ही सैन्य कौशल का प्रशिक्षण देना शुरु कर दिया था।
जबकि शाहजहां के उसके खुद के पिता जहांगीर के साथ बेहद तनावपूर्ण रिश्ते थे। दरअसल, जहांगीर अपनी अत्याधिक चतुर और हूसन की मालिका बेगम नूरजहां की कूटनीतियों को मानते थे और उन्हीं को तवज्जो देते थे, जिसके चलते शाहजहां और जहांगीर में बहुत ज्यादा तनाव रहता था।
वहीं जिस तरह जहांगीर ने अपने पिता अकबर के साथ बगावत कर मुगल सम्राज्य का राजपाठ संभाला था, ठीक उसी तरह शाहजहां ने भी अपने पिता जहांगीर के साथ छल-कपट कर मुगल सम्राज्य का शासन संभाला था।
मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में शाहजहां –
शाहजहां की सौतली मां नूरजहां बिल्कुल नहीं चाहती थी कि शाहजहां मुगल सिंहासन पर विराजित हो, वहीं शाहजहां ने भी नूरजहां की साजिश को समझते हुए 1622 ईसवी में आक्रमण कर दिया, हालांकि इस आक्रमण में वह कामयाब नहीं हो सका।
1627 ईसवी में मुगल सम्राट जहांगीर की मौत के बाद शाहजहां ने अपनी चतुर विद्या का इस्तेमाल करते हुए अपने ससुर आसफ खां को निर्देश दिया कि जो मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी बनने के प्रवल दावेदार है उनको खत्म कर दिया जाए।
जिसके बाद आसफ खां ने चालाकी से दाबर बख्श, होशंकर, गुरुसस्प, शहरयार की हत्या कर दी और इस तरह शाहजहां को मुगल सिंहासन पर बिठाया गया। बहुत ही कम उम्र में शाहजहां को मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी के रुप में चुन लिया गया।
साल 1628 ईसवी में शाहजहां का राज्याभिषेक आगरा में किया गया और उन्हें ”अबुल-मुजफ्फर शहाबुद्दीन, मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी की उपाधि से सम्मानित किया गया। मुगल सिंहासन संभालने के बाद मुगल शहंशाह ने अपने दरबार में सबसे भरोसमंद आसफ खां को 7 हजार सवार, 7 हजार जात एवं राज्य के वजीर का पद दिया था।
शाहजहां ने अपनी बुद्दिमत्ता और कुशल रणनीतियों के चलते साल 1628 से 1658 तक करीब 30 साल शासन किया। उनके शासनकाल को मुगल शासन का स्वर्ण युग और भारतीय सभ्यता का समृद्ध काल कहा गया है।
स्थापत्य एवं वास्तुकला के गूढ़ प्रेमी थे मुगल शासक शाहजहां –
शाहजहां, शुरु से ही एक शौकीन, साहसी और अत्यंत तेज बुद्धि के बादशाह होने के साथ-साथ कला, वास्तुकला, और स्थापत्य कला के गूढ़ प्रेमी भी थे, उन्होंने अपने शासन काल में मुगलकालीन कला और संस्कृति को खूब बढ़ावा दिया और कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया है जो आज भी इतिहास के पन्नों पर दर्ज हैं एवं हिन्दू-मुस्लिम परंपराओं को बेहद शानदार ढंग से परिभाषित करती हैं।
वहीं उन्हीं में से एक ताजमहल भी है, जो अपनी भव्य सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व की वजह से दुनिया के 7 आश्चर्यों में गिनी जाती है। शाहजहां के शासनकाल में बनी ज्यादातर संरचनाओं और वास्तुशिल्प का निर्माण सफेद संगममर पत्थरों से ही किया गया है, इसलिए शाहजहां के शासनकाल को ‘संगममर शासनकाल’ के रुप में भी जाना जाता है।
शाहजहां के शासनकाल में मुग़ल साम्राज्य की समृद्धि, शानोशौक़त और प्रसिद्धि सातवें आसमान पर थी, शहंशाह के दरबार में देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित लोग आते थे और उनके वैभव-विलास को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते और उनके शाही दरबार की सराहना भी करते थे।
शाहजहां ने मुगल सम्राज्य की नींव और अधिक मजबूत करने में अपनी मुख्य भूमिका अदा की थी। शाहजहां के राज में शांतिपूर्ण माहौल था, राजकोष पर्याप्त था जिसमें गरीबी और लाचारी की कोई जगह नहीं थी, लोगों के अंदर एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सदभाव और सम्मान था।
इसलिए शाहजहां ने अपनी प्रजा के सामने एक कुशल प्रशासक के रुप में अपनी छवि बना ली थी। अपनी कूटनीति और बुद्दिमत्ता के चलते शाहजहां ने फ्रांस, इटली, पुर्तगाल, इंग्लैंड और पेरिस जैसे देशों से भी मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित कर लिए थे, जिससे उनके शासनकाल में व्यापार को भी बहुत बढ़ावा मिला था और राज्य का काफी विकास हुआ था।
वहीं साल 1639 में शाहजहां ने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली शिफ्ट कर लिया, उन्होने अपनी नई राजधानी को शाहजहांबाद नाम दिया। इस दौरान उन्होंने दिल्ली में लाल किला, जामा-मस्जिद समेत कई मशहूर ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण भी करवाया।
साल 1648 को मुगल शासकों के मशहूर मयूर सिंहासन को आगरा से लाल किले में शिफ्ट कर दिया। इसके अलावा शाहजहां ने अपने शासनकाल में बाग-बगीचों को भी विकसित किया था।
शाहजहां के शासनकाल में मुगल सम्राज्य का विस्तार –
मुगल सम्राट शाहजहां के शासनकाल को मौर्य सम्राज्य का स्वर्णिम युग कहा जाता है, क्योंकि शाहजहां ने अपने शासनकाल में मौर्यकालीन कला, स्थापत्य कला, वास्तुकला को बढ़ावा दिया था और कई राज्यों को जीत कर मौर्य सम्राज्य में मिला लिया था।
मुगल सिंहासन संभालते ही मुगल शाहजहां ने सबसे पहले अहमदनगर पर विजय हासिल कर साल 1633 ई. में उसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया। इस दौरान शाहजहां ने आखिरी निजामशाही सुल्तान हुसैनशाह को ग्वालियर के किले में बंधक भी बना लिया था, जिससे निजामशाही वंश का अंत हो गया।
शाहजी भोंसले पहले अहमदनगर की सेवा में थे, लेकिन अहमदनगर के मुगल सम्राज्य में विलय होने के बाद शाहजी को बीजापुर की सेवा स्वीकार करनी पड़ी थी।
अहमदनगर को साम्राज्य में मिलाने के बाद बीजापुर एवं गोलकुंडा से मुगल सम्राट शाहजहां ने कुछ शर्तों के मुताबिक संधि कर ली थी, जिनमें से कुछ शर्तें इस प्रकार हैं –
गोलकुंडा से संधि करने के बाद मुगल सम्राट शाहजहां का नाम खुतबे और सिक्कों दोनों पर शामिल किया गया।
गोलकुंडा के शासक ने अपनी एक पुत्री का विवाह शाहजहां के पोते और औरंगजेब के पुत्र शहजादा मोहम्मद से कर दिया।
शाहजहां को 6 लाख रुपए का वार्षिक कर देने की बात स्वीकार की थी।
मुहम्मद सैय्यद (फारस का मशहूर व्यापारी) गोलकुंडा का बुद्धिमान वजीर था और वह क्रोधित होकर मुगलों की सेवा में चला गया। और फिर उसने मीर मुगल शहंशाह शाहजहां को कोहिनूर हीरा उपहार में दिया था।
1636 ईसवी में पांचवे मुगल बादशाह शाहजहां ने बीजापुर के शासक आदिलशाह द्धारा मुगल सम्राज्य की अधीनता नहीं स्वीकार करने पर धावा बोल दिया और उसे संधि करने के लिए मजबूर कर दिया। संधि की शर्तो के मुताबिक सुल्तान ने हर साल 20 लाख रुपए कर के रुप में देने का वादा किया।
इसके अलावा गोलकुण्डा को परेशान न करना, शाहजी भोंसले का मद्द नहीं करना भी संधि की शर्तों में शामिल किया गया। शाहजहां ने जबरन संधि करने के बाद अपने पुत्र औरंगजेब को 11 जुलाई, 1636 ईसवी को दक्षिण का राजप्रतिनिधि नियुक्त कर दिया।
साल 1636 से 1644 के दौरान औरंगबाद को मुगलों द्धारा दक्षिण में जीते गए प्रदेशों की राजधानी बनाया गया इसके बाद 1644 में औरंगजेब को उसके भाई दाराशिकोह के विरोध के कारण मजबूर होकर दक्कन के राजप्रतिनिधि के पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, इसके बाद साल 1645 में औरंगजेब को गुजरात का शासक बना दिया गया। इसके बाद औरंगजेब को फिर से कंधार, बल्ख आदि पर आक्रमण के लिए भेजा और फिर से औरंगेजेब को साल 1652 से 1657 में दक्षिण की सूबेदारी दी गई, इस दौरान शाहजहां के पुत्र औरंगेजब ने दक्षिण में मुर्शिदकुली खां की मद्द से यहां की अर्थव्यवस्था एवं लगान व्यवस्था को मजबूत बनाया।
इसके बाद शाहजहां के शासनकाल के दौरान मुगल शासकों ने गोलकुण्डा के शासक कुतुबशाह को संधि करने पर विवश कर दिया, जिसके परिणामस्वरुप मुगल सम्राज्य के दौरान गोलकुण्डा दुनिया के सबसे बड़े हीरा विक्रेता बाजार के रुप में उभरा।
मध्य एशिया में भी मुगलों का आधिपत्य स्थापित नहीं हो सका। मध्य एशिया में मुगल सम्राज्य के विस्तार करने के लिए शाहजहां ने अपने पुत्र शहजादा मुराद एवं औरंगजेब को भेजा था।
1622 ईसवी में शाहजहां के पिता जहांगीर के समय में कंधार का किला मुगलों के अधिकार से निकल गया था लेकिन शाहजहां के कुटनीतिक नीतियों की वजह से वहां के किलेदार अली मर्दान खां ने 1639 ईसवी में यह किला मुगलों को दे दिया था।
1648-49 ई. में इस किले पर फारसियों ने अपना अधिकार जमा लिया और कंधार का किला मुगलों से फिर से छीन लिया गया और इसके बाद मुगल बादशाह शाहजहां ने कंधार के किले पर जीत हासिल करने के लिए सैन्य अभियान भी चलाएं लेकिन शाहजहां के शासनकाल में कंधार के किले पर मुगल कभी अपना अधिककार नहीं कर सके।
शाहजहां के शासनकाल के समय हुए कुछ चर्चित विद्रोह:
वैसे तो मुगल बादशाह शाहजहां के शासनकाल में शांतिपूर्ण माहौल था, लेकिन उनके शासन में कुछ विद्रोह भी हुए जो कि इस प्रकार है –
शाहजहां के शासनकाल में साल 1628 से 1636 के बीच बुंदेलखण्ड का पहला विद्रोह भड़का। 1628ई. में बुंदेला नायक और वीरसिंह बुंदेला के पुत्र जुझार सिंह ने अपनी लालची प्रवृत्ति के चलते धोखाधड़ी से प्रजा का धन इकट्ठा कर लिया, जिसके बाद शाहजहां ने उसके ऊपर आक्रमण कर दिया, फिर जुझार सिंह ने शाहजहां के सामने आत्मसमर्पण कर माफी मांग ली फिर कुछ समय के बाद यह विद्रोह पूरी तरह ठंडा पड़ गया।
पांचवे मुगल सम्राट शाहजहां के शासनकाल के समय अफगान सरदार खाने – जहाँ लोदी जो मालबा की सूबेदारी संभाल रहा था, उसने मुगल दरबार में आदर-सम्मान नहीं मिलने की वजह से विद्रोह कर दिया था।
शाहजहां के शासनकाल के समय एक छोटी सी घटना की वजह से सिक्खों के गुरु हरगोविंद सिंह का मुगलों के साथ विद्रोह हुआ, जिसमें सिक्खों को हार का सामना करना पड़ा था।
मुगल सम्राटों ने पुर्तगालियों को नमक का व्यापार करने का एकाधिकार दे दिया था, लेकिन पुर्तगाली अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे थे, और पुर्तगालियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था, जिसको खत्म करने के लिए 1632 में मुगल बादशाह शाहजहां ने पुर्तगालियों के प्रमुख व्यापारिक केन्द्र हुगली पर अधिकार कर लिया था।
मुगल शाहजहां के समय में साल 1630-1632 में ही दक्कन एवं गुजरात में भीषण अकाल पड़ा था, जिससे न सिर्फ कई लोगों की सूखे की चपेट में आकर मौत हो गई थी, बल्कि गुजरात और दक्कर वीरान पड़ गया था।
शाहजहां- मुमताज की अमर प्रेम कहानी –
साल 1612 में खुर्रम उर्फ शाहजहां का विवाह आसफ खान की पुत्री अरजुमंद बानो बेगम (मुमताज महल) से हुआ था, जिसे शाहजहां ने ”मलिका-ए-जमानी’ की उपाधि प्रदान की थी। इनके अलावा भी शौकीन शाहजहां ने कुछ और भी शादिया की थी।
लेकिन मुमताज बेगम उनकी सबसे प्रिय पत्नी और बेहद खूबसूरत पत्नी थी। शाहजहां ने उनकी खूबसूरती से प्रभावित होकर उनका नाम अरजुमंद बानो बेगम से बदलकर मुमताज रख दिया था, जिसका अर्थ होता है – महल का सबसे कीमती नगीना!
मुमताज से शाहजहां इस कदर प्रेम करता थे कि वह उससे बिल्कुल भी दूर नहीं रह सकते थे, और उसे अपने हर दौरे पर साथ ले जाया करता थे, यही नहीं अपने राज-काज के हर काम भी उनकी सलाह से करते थे। वहीं कई इतिहासकारों के मुताबिक मुमताज की मुहर या उनकी इजाजत के बगैर शाही फरमान तक जारी नहीं करते थे।
वहीं साल 1631 में शाहजहां की ताजपोशी के महज 3 सालों बाद अपनी 14वीं संतान को जन्म देते वक्त प्रसव पीड़ा की वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी, अपने प्रिय बेगम की मौत से शाहजहां बेहद टूट गए थे।
मुमताज की मौत के बाद करीब 2 साल तक शहंशाह शोक बनाते रहे थे। इस दौरान रंगीन मिजाज के शहंशाह ने अपने सारे शौक त्याग दिए थे, न तो उन्होंने शाही लिबास पहने और न ही शाही जलसे में वे शामिल हुए थे।
मुमताज की याद में शाहजहां ने बनवाया ताजमहल –
शाहजहां को स्थापत्य कला एवं वास्तुकला से बेहद लगाव था, वहीं उसने अपने शासन काल में मुगलकाल की सबसे बेहतरीन स्मारक ताजमहल का निर्माण करवाया था, जो कि अपनी भव्यता, खूबसूरती और आर्कषण की वजह से दुनिया के सात अजूबों में से एक है।
आगरा में स्थित सफेद संगममर के पत्थरों से बनी ताजमहल की इमारत अत्यंत भव्य और सुंदर है। यह शाहजहां द्धारा बनवाया गया उनकी मुमताज बेगम एक बेहद भव्य और आर्कषक कब्र है, इसलिए इस खास इमारत को ”मुमताज का मकबरा” भी कहते हैं।
शाहजहां ने अपने प्रेम को सदा अमर रखने के लिए मुमताज की याद में ताजमहल बनवाने का फैसला लिया था। इसलिए, इसे उन दोनों के बेमिसाल प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।
मोहब्बत की मिसाल माने जाने वाले ताजमहल के निर्माण में करीब 23 साल लगे थे। वैसे तो मुमताज बेगम के इस खास मकबरे का निर्माण काम साल 1643 में ही पूरा हो गया था, लेकिन इसका ऐतिहासिक वास्तुकला और वैज्ञानिक महत्व के हिसाब से निर्माण करने में करीब 11 साल का ज्यादा वक्त और लगा था और इसका निर्माण काम साल 1653 तक पूरा किया गया था।
ताजमहल को बनाने में कई प्राचीन, मुगलकालीन, तुर्किस, इस्लामिक और भारतीय कलाओं का समावेश किया गया है।
वहीं करीब 20 हजार मजदूरों ने इस ऐतिहासिक और भव्य इमारत का निर्माण किया था, मुगल शिल्पकार उस्ताद अहमद लाहैरी के नेतृत्व ने इन मजदूरों ने काम किया। इसके बारे में यह भी कहा जाता है, जिन मजदूरों ने ताजमहल बनाया था, इसका निर्माण काम पूरा होने के बाद मुगल सुल्तान शाहजहां ने सभी कारीगरों के हाथ कटवा दिए थे, ताकि ताजमहल जैसी कोई अन्य इमारत दुनिया में नहीं बन सके, वहीं ताजमहल दुनिया की सबसे अलग और अदभुत इमारत होने की यह भी एक वजह है।
शाहजहां एक सहिष्णु शासक:
शाहजहां एक सहिष्ण शासक था उसने अपने शासनकाल में इस्लाम को बढ़ावा दिया और इस्लाम का पक्ष लिया और अपनी धार्मिक नीतियों से हिन्दुओं के साथ घोर पक्षपात किया। उनके अंदर इस्लाम धर्म के प्रति कट्टरता थी और हिन्दू जनता के प्रति सहिष्णुता एवं उदारता नहीं थी।
शाहजहां ने अपने शासनकाल में पायबेस और सिजदा प्रथा को खत्म किया और इलाही संवत के स्थान पर हिजरी संवत का इस्तेमाल किया।
शाहजहां ने गौहत्या से बैन हटा दिया इसके साथ ही हिन्दुओं को मुस्लिम गुलाम रखने पर बैन लगा दिया।
हिन्दुओं की तीर्थयात्रा पर कर लगा दिया, इसके साथ ही और 1633 ईसवी में बने हिन्दुओं के मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया। जिसके चलते कश्मीर, गुजरात, इलाहाबाद, बनारस आदि में कई हिन्दू मंदिर तोड़ दिए गए थे, जिससे हिन्दुओं की धार्मिक भावना काफी आहत हुई थी।
शाहजहां ने अपने शासनकाल के 7 साल बाद यह आदेश जारी किया था है कि अगर कोई अपनी इच्छा से मुसलमान बन गया तो उसे अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार होगा।
हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने के लिए शाहजहां ने एक अलग से विभाग भी खोल दिया था, जिससे मुगल बादशाह की धार्मिक सहिष्णुता का पता लगाया जा सकता है।
शाहजहां अपने शासनकाल में अपने मुगल सम्राज्य में जब पुर्तगालियों के बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश कर रहा था, इस दौरान उसने आगरा के गिरिजाघरों को तुड़वा दिया था।
मुगल बादशाह शाहजहां, मुस्लिमों का मुख्य धार्मिक स्थल मक्का और मदीना के फकीरों और मुल्लाओं पर दान करता था।
हालांकि, अपने धर्म के प्रति सहिष्णु होने के बाबजूद मुगल सम्राट शाहजहां ने अपने शासनकाल में हिन्दू राजाओं के माथे पर तिलक लगाने की प्रथा को जारी रखा एवं अहमदाबाद में चिंतामणि मंदिर की मरम्मत किए जाने की आज्ञा दी।
यही नहीं जगन्नाथ, गंगा लहरी उसके प्रमुख राजकवि थे, जबकि कवीन्द्रचार्य आयर सुंदरदास, चिंतामणि आदि हिन्दू लेखक भी उनके शाही दरबार में थे।
शाहजहां ने एक कैदी के रुप में बिताए अपने जीवन के अंतिम वर्ष –
इतिहासकारों के मुताबिक शाहजहां और मुमताज महल की 14 संतानों में से सिर्फ 7 संतानें ही जीवित बचीं थी, जिनमें से 4 पुत्र और 3 पुत्रियां थी। वहीं शाहजहां के चारों पुत्र दारा शिकोह, शाह शुजा, औरंग़ज़ेब, मुराद बख्श, की आपस में बिल्कुल भी नहीं बनती थी, क्योंकि वे चारों ही मुगल सिंहासन पर बैठना चाहते थे, चारों के बीच उत्तराधिकारी की लड़ाई साल 1657 में ही शुरु हो गई थी।
हालांकि, शाहजहां चाहते थे कि उनके बाद उनका पुत्र दारा शिकोह मुगल सिंहासन पर बैठे क्योंकि वो चारों पुत्रों में सबसे ज्यादा बुद्धिमान, शिक्षित, सभ्य, समझदार और दयालु स्वभाव का था, लेकिन औरंगजेब, अपने पिता की सत्ता पाने की चाहत में इस हद तक गिर गया कि उसने अपने पिता शाहजहां को ही बंधक बना लिया।
इतिहासकारों के मुताबिक साल 1658 में क्रूर पुत्र औरंगजेब ने शाहजहां को आगरा किले में कैद कर लिया था। करीब 8 साल तक शाहजहां ने इस किले के शाहबुर्ज में एक बंदी की तरह गुजारे, हालांकि इस समय शाहजहां की बड़ी बेटी जहांआरा (मुमजाज बेगम की हु-बहू थी) ने साथ रहकर उसकी सेवा की थी।
31 जनवरी, साल 1666 से यह महान मुगल शहंशाह शाहजहां इस दुनिया को अलविदा कह गया। जिसके बाद ताजमहल में उनकी बेगम मुमताज महल की कब्र के पास ही शाहजहां के शव को दफना दिया गया और उनकी मौत के बाद उनके पुत्र औरंगजेब छल- कपट से मुगल सिंहासन की राजगद्दी पर बैठा।
इस तरह मुगल सम्राज्य के महान शासक शाहजहां का अंत हो गया लेकिन आज भी शाहजहां को दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक ताजमहज बनवाने के लिए याद किया जाता है और उनकी और मुमताज की मोहब्बत की मिसाल दी जाती है।
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